नागा-संन्यासी-बने-1500-गृहस्थ
144 वर्ष बाद आए इस महाकुंभ के त्रिवेणी तट पर 1500 गृहस्थ और युवा सांसारिक मोह-माया छोड़ वैराग्य के रास्ते पर चल पड़े हैं। और इसकी शुरूआत हुई माता-पिता सहित अपनी सात पीढ़ियों का पिंडदान करने से। पिंडदान के बाद ही उन्होंने नागाओं के रहस्यलोक में प्रवेश किया। गौरतलब है कि अब इनका अपने घर-परिवार से कोई नाता नहीं रहा है उनका उनके परिवार से वास्ता पूरी तरह टूट गया है।
बात यहीं तक खत्म नहीं होती है अब ये सभी लोग जिन्होंने नागाओं के लोक में प्रवेश किया है वो जीवन भर सनातन धर्म की रक्षा, वैदिक परंपरा के संरक्षण, जनकल्याण के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे। और ये आंकड़े भी अभी नहीं रूकेंगे। अनेकों युवा और गृहस्थ आने वाले समय के दौरान इस दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। आपको बता दें कि 19 जनवरी को महिलाओं को नागा बनाने की दीक्षा दी जाएगी। इसके बाद पुरुषों को 24 और 27 जनवरी को पुन: नागा संन्यासी बनाया जाएगा।
किस तरह से बनाए गए संन्यासी
महाकुंभ में संन्यासी बनने की प्रक्रिया उनकी मनोच्छा पर पूरी तरह आधारित है। गुरूओं के मार्गदर्शन में जब व्यक्ति नागा साधु बनने का प्रण लेता है उसके बाद उसकी संन्यासी बनने की आगे की प्रक्रिया शुरू की जाती है। महाकुंभ में गंगा के त्रिवेणी घाट पर उन्हें नागा संन्यासी बनाने की प्रक्रिया आरंभ हुई। सबसे पहले सभी का मुंडन करवाया गया। इसके बाद मंत्रोच्चार के साथ सभी नागा संन्यासी बनने वाले लोगों को 108 बार गंगा में डुबकी लगवाई गई। और फिर उसके बाद पिंडदान की प्रक्रिया शुरू की गई। यहां गौर करने वाली बात ये है कि, उन्होंने खुद अपना पिंडदान किया और खुद को सांसारिक रूप से मृत होने की घोषणा कर दी।
नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया
- नागा संन्यासी बनने वाले व्यक्ति को 3 से 6 वर्ष तक परीक्षा देनी पड़ती है।
- कड़े अनुशासन में रखा जाता है। उन्हें त्याग, तपस्या, ब्रह्मचर्य के रूप में खरा उतरना पड़ता है।
- घर-परिवार से दूर रहना होता है। पूरी परीक्षा में खरा उतरता है तो उसका मुंडन करके पिंडदान करवाया जाता है।
- नागा बनने वाले व्यक्ति का नया नाम रखा जाता है और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी जाती है।
- उन्हें तंग तोड़ यानि लिंग भंग प्रक्रिया से गुजरना होता है, जो कि गुप्त ढंग से की जाती है।
तो नागा संन्यासी बनने के लिए आपको या कहें इन सभी लोगों को इन चरणों से गुजरना अनिवार्य है। नागा बनने वालों को महाकुंभ के दूसरे अमृत स्नान मौनी अमावस्या पर दिगंबर गायत्री मंत्र दिया जाएगा। अखाड़े की धर्मध्वजा के नीचे आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि सबको दिगंबर गायत्री मंत्र देंगे। इसके बाद उन्हें अमृत स्नान में शामिल किया जाएगा। इसके साथ सभी अखाड़े से पूर्ण रूप से जुड़ जाएंगे। और नागा संन्यासी बनने के लिए कठोर तप में लग जाएंगें।