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आखिर क्यों द्वारका को डूबना पड़ा, क्या है श्रीकृष्ण की लीला समाप्त करने के पीछे का रहस्य ?

आखिर क्यों द्वारका को डूबना पड़ा

आखिर क्यों द्वारका को डूबना पड़ा

आखिर क्यों द्वारका को डूबना पड़ा, क्या है श्रीकृष्ण की लीला समाप्त करने के पीछे का रहस्य ?

श्रीकृष्ण भगवान जहां गए उस जगह को उन्होंने अपना बना लिया। और ना केवल उस जगह को बल्कि वहां रहने वाले सभी लोग कृष्ण के प्रति अपार प्रेम का भाव रखते थे। अब चाहें बात करें गोकुल की जहां उनका बचपन बिता। या बात करें द्वारका की जिसे श्रीकृष्ण ने खुद बसाया था। लेकिन आज अगर हम द्वारका की बात करते है तो हमारे जहन में एक सवाल बड़ी तेजी से दौड़ जाता है कि आखिर द्वारका जहां श्रीकृष्ण का अपना हरिगृह और निजी महल था वो अब कहां है ? कहते है कि कृष्ण की द्वारका नगरी पानी में डूब गई थी। तो आइए जानते है इसके पीछे की कहानी के बारे में

सबसे पहले तो आपको बता दें कि भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद अपनी नगरी द्वारका को बसाया था, जो कि प्राचीन भारत की सबसे वैभवशाली और समृद्ध नगरी मानी जाती है। इतना ही नहीं, माना जाता है कि द्वारका नगरी सात द्वारों वाली थी और तो और समुद्र के तट पर बसी हुई थी, जिसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था। लेकिन जो घटना इस नगरी के साथ जुड़ी हुई है वो ये है कि भगवान श्रीकृष्ण के निधन के बाद द्वारका समुद्र में डूब गई।

हालांकि अभी तक इसके सटीक कारणों का पता तो नहीं चल पाया है लेकिन इस घटना के पीछे धार्मिक, पौराणिक और भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से कई कारण बताए जाते हैं।
महाभारत के अनुसार, महायुद्ध के बाद यदुवंशियों में आपसी संघर्ष बढ़ने लगा। कहा जाता है कि ऋषियों के श्राप के कारण यदुवंशियों ने आपसी कलह में एक-दूसरे का संहार कर दिया और इसी संघर्ष में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न और अन्य यदुवंशी भी मारे गए।

वही जब इस विनाश का अंत हो गया, तब श्रीकृष्ण ने समुद्र तट पर ध्यान लगाया और अपनी लीला समाप्त करने का निर्णय लिया।
कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना देह त्यागा, तब उनके साथ द्वारका नगरी का भी अंत हो गया। द्वारका, जिसे समुद्र ने सहारा दिया हुआ था, श्रीकृष्ण के निधन के बाद धीरे-धीरे समुद्र में समा गई।
भागवत पुराण के अनुसार,

भगवान श्रीकृष्ण के निधन के बाद समुद्र ने अपनी मर्यादा तोड़ दी और द्वारका नगरी को अपने अंदर समा लिया। इसे भगवान की लीला का एक हिस्सा माना जाता है, क्योंकि श्रीकृष्ण ने धरती पर अपने अवतार का उद्देश्य पूरा कर लिया था।
द्वारका नगरी के समुद्र में डूबने का कारण
द्वारका का डूबना भगवान श्रीकृष्ण की लीला का समापन था। यह घटना प्रतीकात्मक रूप से यह दिखाती है कि सांसारिक वैभव और शक्ति स्थायी नहीं होते। भले ही द्वारका सबसे शक्तिशाली और वैभवशाली नगरी थी, लेकिन श्रीकृष्ण के जाने के बाद इसका अंत होना निश्चित था।

आधुनिक द्वारका, जिसे “गुजरात का द्वारका” कहा जाता है, समुद्र तट पर बसी एक पवित्र नगरी है। इसे मूल द्वारका का पुनर्निर्माण माना जाता है। यहां द्वारकाधीश मंदिर, रुक्मिणी मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण की स्मृति को जीवित रखते हैं।

द्वारका नगरी का डूबना केवल एक भौतिक घटना नहीं थी, बल्कि यह भगवान श्रीकृष्ण के अवतार और उनकी लीला का अंतिम चरण था। यह घटना हमें सिखाती है कि संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। द्वारका का वैभव और उसका अंत, दोनों ही इस सत्य का प्रमाण हैं कि यह सृष्टि परिवर्तनशील है। धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से द्वारका का डूबना एक अद्वितीय घटना है, जो हमें इतिहास, धर्म और विज्ञान के अद्भुत समन्वय का अनुभव कराती है।

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